पत्रकार कब तक इस खुशफहमी में जीते रहेंगे कि वे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है!'*

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 *पत्रकार कब तक इस खुशफहमी में जीते रहेंगे कि वे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है!'*


✍️✍️प्रधान सम्पादक क्रिश जायसवाल


मैं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से सीधे सवाल करना चाहता हूं कि लोकतंत्र के तथाकथित चौथे स्तम्भ को स्वतंत्र भारत की सरकारों ने अब तक लंगड़ा/अपाहिज क्यों बनाए रखा है?

कोरोना से संक्रमित पत्रकार साथी ‘दैनिक जागरण’ के उप समाचार संपादक पंकज कुलश्रेष्ठ की कुर्बानी के बाद आज मैं भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से ये सीधे सवाल करना चाहता हूं कि लोकतंत्र के तथाकथित चौथे स्तम्भ को स्वतंत्र भारत की सरकारों ने अब तक लंगड़ा/अपाहिज क्यों बनाए रखा है?


अन्य तीनों स्तम्भों की तरह इस चौथे स्तम्भ को सरकार ने सुरक्षित और संरक्षित क्यों नहीं किया? इस चौथे स्तम्भ को अन्य तीनों स्तम्भों की भांति आर्थिक और कानूनी अधिकारों से वंचित रखने की साजिश क्यों होती रही है? यही प्रश्न मेरा मीडिया घरानों से भी है कि अब तक सरकार को अन्य तीनों स्तम्भों की भांति अधिकार और सुविधा सम्पन्न करने के लिए मजबूर क्यों नहीं किया गया?


स्वतन्त्र भारत की अब तक की सरकारों ने मीडिया/पत्रकारों का सिर्फ निज स्वार्थ सिद्धि के लिए इस्तेमाल किया है। केवल सरकारें (विधायिका)ही नहीं, कार्यपालिका और न्यायपालिका भी इस चौथे स्तम्भ का अपने हितों के लिए दुरुपयोग की हद तक इस्तेमाल करने में पीछे नहीं दिखी हैं। लोकतंत्र के तीनों स्तम्भों का भरसक प्रयास यही रहता है कि मीडिया/पत्रकार नाम का ये चौथा स्तम्भ उनकी तरह मजबूत/सुरक्षित न होने पाए!


हम पत्रकारों ने भी इसी अधोगति को अपनी नियति मान लिया है। हम सिर्फ इसी खुशफहमी में जिंदा रहकर गर्व महसूस करते हैं कि सब हमको लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते हैं, नेताओं-अधिकारियों से दुआ सलाम है हमारी..बहुत पूछ है हमारी..जबकि हाल बिल्कुल उलट है! अपने हालातों/दुर्गति पर ईमानदारी से गौर करके अपनी अंतरात्मा से तो पूछिए कि क्या हम यथार्थ में अन्य तीनों स्तम्भों के पासंग में भी टिकते हैं?


आखिर इन चौतरफा दुर्गतियों के बीच हमारे पत्रकार भाई/पत्रकार संगठन कब तक इस खुशफहमी में जीते रहेंगे कि वे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है! मौजूदा सरकार को इस तथाकथित चौथे स्तम्भ के बारे में अब अपना नजरिया साफ तौर पर स्पष्ट करना ही चाहिए।


सरकार से जवाब मांगिये साथियों कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को अब तक लंगड़ा, मजबूर और दया का पात्र बनाकर क्यों रखा गया है? इस चौथे स्तम्भ को लंगड़ा बनाए रखने के पीछे अन्य तीनों स्तम्भों के बीच आखिर कौन सी दुरभिसन्धि है और क्यों?


सरकार यह भी खुले मंच से स्पष्ट करे कि वह इस चौथे स्तम्भ को अन्य तीनों स्तम्भों की भांति सुरक्षित, समृद्ध और मजबूत करना चाहती है या नहीं! ...और यदि वह ऐसा नहीं करना चाहती तो क्यों? इस देश की जनता को भी ये जानने का पूरा हक है कि लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को नजरंदाज और बर्बाद करके वह तीन स्तम्भों के बूते तिपाया बनकर तृप्त/खुश क्यों है?


अब हम पत्रकारों को अपनी ये दुर्गति किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। हमको सरकार से ये सारे सवाल करने और उन्हें जवाब देने के लिए मजबूर करने का पूरा हक है। अपने साथी पंकज कुलश्रेष्ठ के परिवार के लिए आर्थिक और सरकारी संरक्षण की माग और उसकी पूर्ति कराना हमारा हक है, कोई भीख नहीं!

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