*(Part 3)*
हेमदास झालावाड़ आवाज पत्रिका
*📜संत रामपाल जी महाराज अपने सत्संग वचनों में कहते हैं*
कि परमेश्वर की खोज युगों-2 से चली आ रही है। परमेश्वर की प्राप्ति न होने का कारण था कि जिन्होंने शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण किया। उनको परमात्मा प्राप्ति तथा अन्य लाभ हो ही नहीं सकते। प्रमाण श्री मद्भगवत् गीता अध्याय 16 श्लोक 23,24 में जिनमें कहा है कि जो साधक शास्त्रविधि को त्याग कर मनमाना आचरण करता है अर्थात् जो साधना की विधि सद्ग्रन्थों में लिखी है, उसके विपरित भक्ति कर्म (साधना) करता है, उसको न तो सुख होता है न सिद्धि को प्राप्त होता है तथा न उसकी परम गति अर्थात् मोक्ष प्राप्त होता है।
जैसे श्री मद्भगवत् गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में तथा अध्याय 8 श्लोक 1, 3, 5 से 10 अध्याय 18 श्लोक 62 अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16,17 अध्याय 4 श्लोक 5 तथा 9 में अध्याय 2 श्लोक 12 अध्याय 10 श्लोक 2 में अध्याय 4 श्लोक 32 व 34 में तथा गीता अध्याय 11 श्लोक 32,47,48 में तथा अध्याय 17 श्लोक 23 में स्पष्ट किया है। जिसमें गीता ज्ञान दाता ने अपनी स्थिति भी बताई है तथा अपने से अन्य परम अक्षर ब्रह्म (पुरूष) की स्थिति भी स्पष्ट की है। अपने विषय में कहा है कि मेरे तथा तेरे अर्जुन बहुत जन्म हो चुके हैं। भावार्थ है कि गीता ज्ञान दाता कहता है कि मैं अविनाशी नहीं हूँ। अविनाशी तो परम अक्षर ब्रह्म है। मेरी भक्ति का केवल एक अक्षर ओम् है। लेकिन इसके जाप से पूर्ण मोक्ष नहीं हो सकता। जन्म-मरण सदा बना रहेगा तथा परमात्मा प्राप्ति भी नहीं हो सकती। जैसे गीता अध्याय 11 श्लोक 32,47,48 में कहा है कि मेरा यह वास्तविक रूप है मैं काल हूँ।
मेरे इस स्वरूप के दर्शन अर्थात् मेरी प्राप्ति न वेदों में वर्णित विधि से न किसी जप से न तप से न किसी क्रिया से नहीं हो सकती। गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अपनी गति को अनुत्तम बताया है। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में किसी अन्य परमात्मा की शरण में जाने के लिए कहा है। उसके लिए गीता अध्याय 4 श्लोक 32, 34 में तत्वदर्शी सन्तों से जानने के लिए कहा है तथा उस परमेश्वर परम अक्षर ब्रह्म (सच्चिदानन्द घन ब्रह्म) की प्राप्ति के लिए गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में कहा है कि उस सच्चिदानन्द घन परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) के पाने का तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्ति व जन्म मरण से पूर्ण छुटकारा पाने के लिए ओम् तत् सत् की साधना करने का निर्देश दिया है। इन तीन मंत्रों में तत् तथा सत् सांकेतिक है। जिनको तत्वदर्शी संत ही जानता है।
जिनको हम महापुरूष माना करते थे। उनकी जीवनी से पता चलता था कि वे बहुत कठिन साधना किया करते थे। जो मनमाना आचरण था। जैसे निराहार रहना, अल्पहारी रहकर साधना करना, अग्नि जलाकर धूने लगा कर उनके बीच में बैठकर तपस्या करना। जल में खड़ा होकर साधना करना तथा सन्यास लेकर वन में चले जाना। उपरोक्त तीन मन्त्रोें (ओम् तत् सत्) को पूर्ण संत से प्राप्त करके मर्यादा में रहकर भक्ति न करके अन्य नाम मन्त्रों जैसे हरे राम, हरे कष्ण, ओम् नमों शिवायः, ओंकार, ररंकार, ज्योति निरंजन, सतनाम तथा अन्य नाम अकाल मूर्त, शब्द सरूपी राम, सतपुरूष आदि-2 का जाप करना यह शास्त्र विरूद्ध साधना थी। उनको हठ योग से कुछ चमत्कारी शक्तियां प्राप्त हो जाती थी इस आधार पर हम इनको परमात्मा प्राप्त मानते थे। लेकिन उन सभी शास्त्राविरूद्ध साधना करने वालो ने परमेश्वर को निराकार बताया है तथा कहा है कि समाधि में परमात्मा का सिर्फ प्रकाश देखा जाता है। विचार करें:- यदि परमात्मा निराकार है तो प्रकाश किसका देखा? जैसे कोई कहे कि सूर्य का प्रकाश देखा और सूर्य को निराकार कहता है। उस नेत्राहीन से कोई पूछे कि सूर्य बिना प्रकाश किसका देखा ? यही दशा उन आध्यात्मिक ज्ञान नेत्र हीनों की है, जो परमात्मा को निराकार बताया करते हैं। समाधि में प्रकाश देखने वालों की दशा तो ऐसी है। जैसे किसी का घर तालाब (जोहड़) के किनारे है। सूर्य का प्रकाश जलाशय में जल पर गिरा वहाँ से प्रकाश का प्रतिबिम्ब घर के अंदर खिड़की के द्वारा प्रवेश होकर दीवार पर दिखाई देता है। उस प्रकाश को देखकर कोई कहे कि यह सूर्य का प्रकाश है। यह तो उचित है। फिर यह कहे कि सूर्य निराकार है। यह अनुचित है। इससे सिद्ध हुआ कि नेत्रहीन प्राणी किसी से सुनी सुनाई दंत कथा के आधार से यह कहता है कि सूर्य का प्रकाश दिवार पर देखा जाता है, परन्तु सूर्य निराकार है। यही दशा तत्वज्ञान नेत्र हीन प्राणीयों की जानों जो परमेश्वर को निराकार कहा करते थे और कहते हैं। वास्तव में परमेश्वर नराकार (मनुष्यवत) तेजोमय शरीर युक्त है। जिसके एक रोमकूप में करोड़ सूर्यों तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक प्रकाश है। उसके प्रकाश का प्रतिबिम्ब सर्व ब्रह्माण्डों में फैला है। ब्रह्मण्ड से (जलाशय की तरह) परमेश्वर का प्रकाश, पिण्ड (मानव शरीर) में समाधि में देखा जाता है। हमें प्रकाश देखकर संतुष्टि नहीं करनी है, हमें परमात्मा प्राप्ति करनी है। मान लीजिए हमने हलवा खाना है और कोई कहे कि देखो हलवे की महक आ रही है। जो परमात्मा का प्रकाश देखकर वाह वाह करते हैं तथा कहते हैं कि हमारा काम पूरा हुआ ‘सब कुछ मिल गया’। उस व्यक्ति के विषय में अन्य श्रद्धालु कहा करते हैं कि यह बहुत पहुँचा हुआ भक्त है, इसको परमात्मा का प्रकाश दिखाई देता है। विचार करें कि वह क्या खाक पहुँचा हुआ होगा, खाना था हलवा, और दूर खड़ा होकर कह रहा है कि मुझे हलवे की महक आ रही है, मुझे सब कुछ मिल गया। यही दशा परमात्मा का प्रकाश देखने वालों की है। जो परमेश्वर को निराकार कहते हैं।
कुछ श्रद्धालु कहते हैं कि परमात्मा (सतपुरूष) सतगुरु रूप में तो साकार है, सतलोक में केवल प्रकाश ही प्रकाश है। सतपुरूष निराकार है। उन्होंने क्या पाया? जीवन व्यर्थ किया है।
लेकिन जिन महापुरूषों को परमात्मा प्राप्ति हुई। उन्होंने परमेश्वर की यथार्थ स्थिति बताई है, कहा है कि सतलोक में परमेश्वर नराकार (मनुष्यवत्) है। परमेश्वर के शरीर के एक रोम कूप में करोड़ सूर्यों से भी अधिक प्रकाश है। परमात्मा के प्रत्यक्ष दष्टा संतों में से कुछेक निम्न हैंः-
1 आदरणीय धर्मदास जी
2 आदरणीय मलूकदास जी
3 आदरणीय दादू दास जी
4 आदरणीय गरीबदास जी (गांव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, हरियाणा)
5 आदरणीय घीसा दास जी
6 आदरणीय नानक देव जी (सिख धर्म के प्रवर्तक)
इन सबको परमात्मा प्राप्ति हुई है। इन सर्व महापुरूषों ने बताया कि परमात्मा सशरीर है, उसका नाम कबीर है। यही परमेश्वर काशी शहर में धाणक(जुलाहे) की भूमिका करके सशरीर मगहर नगर से सतलोक चले गये थे। अधिक जानकारी के लिए कप्या पढ़े कुछ प्रमाण इसी पुस्तक (धरती पर अवतार) के पष्ठ 88 से 92 पर।
पवित्र सदग्रन्थ भी परमात्मा की यथार्थ स्थिति का वर्णन करते हैं। पवित्र चारों वेदों में परमेश्वर को साकार (नराकार) कहा है वेदों को सत्य मानने वाले महर्षि दयानन्द तथा उसके भक्त भी परमात्मा तथा वेद ज्ञान से अपरिचित रहे। क्योंकि महर्षि दयानन्द (आर्य समाज प्रवर्तक) तथा उसके अनुयाई परमात्मा को निराकार कहते रहे। जबकि वेदों में परमात्मा साकार (नराकार) बताया है। वह राजा के समान दर्शनीय है। द्यूलोक (प्रकाशमय सतलोक) में रहता है। वहाँ से चलकर सशरीर यहाँ पथ्वी पर आता है। जब परमात्मा पृथ्वी पर अवतरित होता उस समय अपने रूप को सरल कर लेता है अर्थात् हल्का तेजयुक्त कर लेता है। यदि परमेश्वर अपने वास्तविक प्रकाश युक्त शरीर में यहाँ प्रकट हो जाये तो उसको चर्म दष्टि से नहीं देखा जा सकता इसलिए परमेश्वर जब यहाँ अवतार रूप में आता है तो अपने रूप को सरल करके आता है। तत्वज्ञान (अध्यात्मिक ज्ञान) का प्रचार करता है। उस समय परमात्मा कवियों की तरह आचरण करता हुआ विचरता है। कपा देखें महर्षि दयानन्द व उनके भक्तों द्वारा किये गये वेद मंत्रों के अनुवाद की फोटो कापियाँ। जिनमें उन्हीं के करकमलों से लिखा गया है कि परमात्मा राजा के समान दर्शनीय है, द्युलोक के तीसरे पष्ठ पर विराजमान है। ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 86 मंत्र 26.27, ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 82 मंत्र 123, ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सुक्त 1 मंत्र 8,9 तथा अन्य मंत्रों में परमात्मा को साकार तथा एक देशीय कहा है। कप्या प्रमाण के लिए देखें फोटो कापी उपरोक्त वेद मंत्रों की इसी पुस्तक ‘‘धरती पर अवतार’’ के पष्ठ 65 से 70 पर।
पवित्र वेदों, श्रीमद्भगवत गीता, पवित्र पुराणों, पवित्र श्री गुरु ग्रंथ साहेब, पवित्र बाईबल, पवित्र कुरान शरीफ तथा अन्य आध्यात्मिक साहित्य को जैसे संत रामपाल दास जी महाराज ने जाना व समझा है। यह जन साधारण का काम नहीं है। इनके आध्यात्मिक ज्ञान से स्पष्ट है कि ये सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। ऐसे लक्षण अवतारी शक्तियों के ही होते हैं। इस पुस्तक में आप पढ़कर आश्चर्य चकित हो जायेंगे कि प्रत्येक सद्ग्रंथ का निष्कर्ष निकालकर अन्य संतों-महंतों तथा महर्षियों को किस प्रकार निर्णायक तरीके से बेनकाब किया है। अवतारी शक्ति का एक विशेष प्रमाण आपके समक्ष यह भी है कि संत रामपाल दास जी महाराज संस्कत नहीं पढ़ें हैं। फिर भी श्री मद्भगवत गीता का यथार्थ अनुवाद करके ‘‘गहरी नजर गीता में’’ पुस्तक की रचना की है। उस अनुवाद को अन्य अनुवादकर्ताओं से जांच कर देखने से स्वतः सिद्ध हो जाता है कि संत रामपाल दास जी महाराज स्वयं परमेश्वर कबीर साहेब जी ही धरती पर अवतार के रूप में अवतरित हुए हैं।
मेरा जन्म सिख परिवार में शहर अमतसर में हुआ। जो बाद में जहांगीर पुर ‘दिल्ली’ में रहने लगा। प्रथम बार सन्त रामपाल दास जी महाराज के विचार सुने तो गले नहीं उतरे। जिज्ञासु बनकर तथा कुछ त्राुटियाँ खोजने के उद्देश्य से न चाहते हुए भी टी.वी. चैनल ‘‘साधना’’ तथा ‘‘जी जागरण’’ पर सुनता रहा। सर्व प्रमाणों को सद्ग्रंथों में देखकर अपनी शिक्षा का अभिमान त्यागकर सन्त जी को समर्पित होना पड़ा। मेरे अनुभव के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में वर्तमान में केवल एक सन्त रामपाल दास जी महाराज ही ‘‘सतगुरु’’ हैं। श्री नानक देव जी के पश्चात् उन्हीं के गूढ़ रहस्यों को केवल सन्त रामपाल दास जी महाराज ने ही जाना है। यह पुस्तक ‘‘धरती पर अवतार’’ पूरे विश्व के मानव समाज के लिए नया संदेश लेकर आई है। विशेष कर सिख समाज के लिए वरदान सिद्ध होगी। जो मूल नाम (सतनाम) के दो अक्षर का जाप सिमरण न करके मोक्ष से वंचित हैं। वह पूर्ति सन्त रामपाल दास जी महाराज के अमत वचनों के सत संदेश से हो जाएगी। जो इस पुस्तक ‘‘धरती पर अवतार’’ में तथा ‘‘ज्ञान गंगा’’ में संग्रहित करके मानव समाज में भेजे जा रहे हैं।
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हेमदास झालावाड़ मनोहरथाना ने बताया
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।