*(Part 4)*
हेमदास झालावाड़ आवाज पत्रिका
कबिर्देव (कबीर परमेश्वर) जी का सतलोक से कलयुग में सशरीर आगमन।
कबिर्देव जी शिशु रूप धार कर लहरतारा तालाब में अवतरण।
परमअक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म जी तीसरे धाम (क्षर ब्रह्म तथा अक्षर ब्रह्म के लोकों से भिन्न जो तीसरा पूर्ण मोक्ष स्थान है उस) में विराजमान है। वह पूर्ण परमात्मा, काल ब्रह्म के भेजे हुए तत्वज्ञान हीन नकली ऋषियों, सन्तों व गुरुओं द्वारा फैलाए सद्गन्थों के विपरित अज्ञान का नाश करने के लिए अपने तत्वज्ञान रूपी शस्त्र को लेकर प्रकट होता है। वह पूर्ण परमात्मा अन्य समय में भी अपने वरणीय भक्तों अर्थात् श्रेष्ठ पुरूषों को विशेष रूप से मिलता है। उनको अपने तत्वज्ञान से परिचित कराता है। उसी उद्देश्य से पूर्ण ब्रह्म अपने तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सत्यलोक से चलकर कलयुग में कबिर्देव अर्थात् कबीर साहेब नाम से संवत् 1455 (सन् 1398) की जेष्ट शुद्धि पूर्ण मासी को सुबह बनारस (काशी) में भारत की पवित्र भूमि पर एक लहरतारा नामक जलास्य में शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर विराजमान हुए (कप्या देखें चित्रा-।)। एक मुसलमान जुलाहा नूर अलि (नीरू) अपनी पत्नि नियामत (नीमा) के साथ प्रतिदिन की तरह उसी सरोवर में स्नान के लिए आए। वे निःसन्तान थे। शिशु रूपधारी परमेश्वर कबिर्देव जी (कबीर साहेब जी) को अपने घर ले गए, परमेश्वर कबिर्देव जी को सत्यलोक से आते हुए देखने वाले ऋषि अष्टानन्द जी थे जो प्रतिदिन की तरह उस दिन भी लहरतारा तालाब में स्नान ध्यान कर रहे थे (कप्या देखें चित्रा ।)। परम अक्षर ब्रह्म कबीर जी ने 25 दिन तक कुछ भी आहार नहीं किया। नीरू तथा नीमा को अति चिन्तित देखकर भगवान शिव एक फकीर (सन्त) के रूप में प्रकट हुए। क्योंकि नीरू तथा नीमा दोनों ब्राह्मण तथा ब्राह्मणी थे। जिनको मुसलमानों ने बलात् मुसलमान बनाया था। जो भगवान शिव के भक्त थे। भगवान शिव जी ने परमेश्वर कबीर जी को देखा तब शिशु रूपधारी कबीर परमेश्वर जी ने कहा फकीर शिव जी एक कंवारी गाय लाओ उसकी कमर पर आप अपना आर्शीवाद देना वह दूध देवेगी। नीरू एक कंवारी गाय मंगवाओ फकीर वेषधारी शिव जी ने उसकी कमर पर थपकी लगाई। कंवारी गाय ने चार सेर (किलोग्राम) का पात्रा भर दिया। शिशु कबीर परमेश्वर जी की लीलामय परवरिश कंवारी गायों से हुई। प्रत्येक युग में परमेश्वर कबीर जी ऐसी ही लीला करते हैं। बड़े होकर परमात्मा कबीर जी साधारण मनुष्य की तरह जुलाहे का कार्य करने लगे तथा अपने मुख्य उद्देश्य जो तत्वज्ञान प्रचार करना था उसे भी करते रहे। परमेश्वर कर्बिदेव ने अपनी कर्बिबाणी द्वारा कविताओं और लोकोक्तियों के माध्यम से तत्वज्ञान को ऊँचेे स्वर में गर्ज-गर्ज कर (बोल-बोल कर गा-गा कर) कहा। जिस कारण वे एक प्रसिद्ध कवि की उपाधी से सुषोभित हुए। कबीर परमेश्वर (कर्बिदेव) जी के कोई माता-पिता नहीं थे न उनकी कोई स्त्राी तथा न सन्तान थी। कमाल एक मुर्दा जीवित किया हुआ बालक था तथा कमाली एक कब्र से निकाल कर जीवित की गई बालिका थी जो शेख तकि नामक पीर की लड़की थी। उन दोनों बच्चों को परमेश्वर कबीर जी ने अपने बच्चों की तरह पाला पोसा था। परमेश्वर कबीर जी सशरीर आए थे, सशरीर अपने शाशवत स्थान अर्थात् सत्यलोक में (तीसरे मुक्ति धाम में) चले गए थे। प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 96 मन्त्र 16 से 20, मण्डल 9 सुक्त 86 मन्त्र 26.27 तथा मण्डल 9 सुक्त 82 मन्त्र 1.2 तथा 3 में तथा मण्डल 9 सुक्त 1 मन्त्र 9, मण्डल 1 सुक्त 31 मन्त्र 17, यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 1, 32, अध्याय 29 मन्त्र 25 में
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हेमदास झालावाड़ ने बताया
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