ये शिखर के रास्ते,हैं किसके वास्ते
आपसे जुड़ा मित्र या रिश्ता जब आपसे जुड़े मित्र या रिश्ते को आपके माध्यम से मिले और एक वक्त आने पर आपको हटाकर डायरेक्ट आपके मित्र या रिश्ते से जुड़ जाए,और तो और आपको भूल भी जाये तो परेशान मत होइए बल्कि यह याद रखिये कि मैं महज़ माध्यम था या थी इन्हें तो किसी भी माध्यम से मिलना ही था और उस माध्यम का परिणाम भी यही होना निश्चित था। कोई और नहीं मैं सही।सबसे बड़ी बात जो एक सीढ़ी पर चढ़कर पिछली सीढ़ी को भूल जाये या तोड़ दे तो यह मानकर चलिए कि एक दिन शिखर पर वो अकेला ही होगा या होगी और उसके साथ ख़ुशियाँ मनाने को उसके पास होगा केवल उसका स्वार्थ और साथ में होगी उसकी ग़लतियाँ और तन्हाई।
महत्वपूर्ण बात कि पुनः जन जीवन में रिश्तों में लौटने की सीढ़ियाँ भी नहीं होंगी जो ऊपर से नीचे की ओर आती हों क्योंकि वो तो वो चढ़ते वक़्त तोड़ चुका या चुकी। शिखर पर टिके रहने का मज़ा तब ही है जब उसे महसूस करवाने के लिए आसपास परिवार,मित्र और वो लोग हों जो आपके सफर के साथी बने थे जिनके साथ और हाथ पकड़कर आपने रास्ता तय किया था जिन्होंने आपके रास्ते के संघर्ष को आसान और सहज बनाने में अपना तन,मन और यहाँ तक कि कभी-कभी धन भी दिया था अतः मित्रों यह शिखर के रास्ते और मंज़िल का मज़ा जब ही दुगुना होता है जब हम अपना इतिहास न भूलें और उन्हें न भूलें जो भूलने लायक कभी नहीं थे।
शालिनी श्रीवास्तव @SKS "शैली"