बच्चों के ग़ुस्से से निपटना ऐसे है आसान
कुछ दिन पहले सुबह-सुबह अख़बार उठाया तो एक ख़बर ने अपनी ओर ध्यान खींच लिया. ख़बर में बताया गया था कि दिल्ली के कृष्णा नगर इलाके के एक सरकारी स्कूल में एक छात्र ने स्कूल के ही दूसरे छात्र पर चाकू से हमला किया था.
ख़बर के मुताबिक़ दोनों छात्रों के बीच सुबह की प्रार्थना के बाद झगड़ा हुआ, जिसके बढ़ने पर एक छात्र अधिक ग़ुस्से में आ गया और उसने इस हमले को अंजाम दिया.
ऐसा नहीं है कि स्कूली छात्रों के बीच हुई आपसी झड़प का यह कोई पहला मामला हो. इससे पहले भी स्कूलों में छात्रों के बीच ग़ुस्से में एक दूसरे के साथ मार पीट के आरोप लगते रहे हैं.
गौर करने वाली बात यह है कि हिंसा की ऐसी कई घटनाओं में किशोर उम्र के बच्चे शामिल पाए जा रहे हैं. बच्चों में ग़ुस्से की यह प्रवृत्ति चिंताजनक हालात पैदा कर रही है.
किशोरों में युवाओं से ज़्यादा ग़ुस्सा
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में कुल 120 करोड़ किशोर हैं जिनकी उम्र 10 से 19 साल के बीच हैं. यूनिसेफ़ की यह रिपोर्ट बताती है कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में किशोरों की संख्या 24 करोड़ से अधिक है.
यह आंकड़ा भारत की जनसंख्या का एक चौथाई हिस्सा है. इतना ही नहीं दुनिया भर के सबसे अधिक किशोर विकासशील देशों में ही रहते हैं.
बच्चों में ग़ुस्से की प्रवृत्ति उनकी उम्र के अनुसार बदलती जाती. साल 2014 में इंडियन जर्नल साइकोलॉजिकल मेडिसिन में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार लड़कों में लड़कियों के मुक़ाबले अधिक ग़ुस्सा देखने को मिलता है.
इस रिसर्च में शामिल लोगों में जिस समूह की उम्र 16 से 19 वर्ष के बीच थी उनमें ज़्यादा ग़ुस्सा देखने को मिला जबकि जिस समूह की उम्र 20 से 26 वर्ष के बीच थी उनके थोड़ा कम ग़ुस्सा. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि किशोर उम्र में युवा अवस्था के मुक़ाबले अधिक ग़ुस्सा देखने को मिलता है.
इसी तरह लड़कों में लड़कियों के मुक़ाबले अधिक ग़ुस्सा देखने को मिला. हालांकि, इसी रिसर्च के अनुसार 12 से 17 आयु वर्ग की लड़कियों में क़रीब 19 प्रतिशत लड़कियां अपने स्कूल में किसी न किसी तरह के झगड़े में शामिल मिलीं.
यह रिसर्च भारत के 6 प्रमुख स्थानों के कुल 5467 किशोर और युवाओं पर की गई थी. इस रिसर्च में दिल्ली, बेंगलुरु, जम्मू, इंदौर, केरल, राजस्थान और सिक्किम के किशोर और युवा शामिल थे.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बच्चों की इस हिंसक प्रवृत्ति के पीछे क्या वजह है?
मोबाइल गेम का असर
मनोवैज्ञानिक और मैक्स अस्पताल में बच्चों की कंसल्टेंट डॉक्टर दीपाली बत्रा बच्चों के हिंसक होने के पीछे कई कारण बताती हैं. वो कहती हैं कि सबसे बड़ी वजह है यह पता लगाना कि बच्चों पर उनके परिजन कितनी नज़र रख रहे हैं.
डॉक्टर बत्रा कहती हैं, ''बड़े शहरों में माता-पिता बच्चों पर पूरी तरह से निगरानी नहीं रख पाते. बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उन्हें मोबाइल फ़ोन दे दिया जाता, मोबाइल पर बच्चे हिंसक प्रवृत्ति के गेम खेलते हैं.''
कोई वीडियो गेम बच्चों के मस्तिष्क पर कैसे असर कर सकता है, इसके जवाब में डॉ. बत्रा कहती हैं, ''मेरे पास जितने भी बच्चे हिंसक स्वभाव वाले आते हैं उनमें देखने को मिलता है कि वे दिन में तीन से चार घंटे वीडियो गेम खेलने में बिताते हैं. इस खेल में एक दूसरे को मारना होता है, जब आप सामने वाले को मारेंगे तभी जीतेंगे और हर कोई जीतना चाहता है. यही वजह है कि वीडियो गेम बच्चों के स्वभाव को बदलने लगते हैं.''
साल 2010 में अमरीका के सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला लिया था कि बच्चों को वो वीडियो गेम ना खेलने दिए जाएं जिसमें हिंसक प्रवृत्ति जैसे हत्या या यौन हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा हो.
इस फ़ैसले के पांच साल पहले कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर ने अपने राज्य में वायलेंट वीडियो गेम क़ानून बनाया था, जिसके तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों को हिंसक वीडियो गेम से दूर रखने की बात थी.
इसके अलावा अमरीकन साइकोलॉजी की तरफ़ की गई रिसर्च में भी इस बारे में बताया गया था कि वीडियो गेम इंसानों के स्वभाव को बदलने में अहम कारक साबित होते हैं.