नाम (दीक्षा) लेने वाले व्यक्तियों के लिए आवश्यक जानकारी Part -E*

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💐 *धरती पर अवतार* 💐 
*(Part 10)* 
हेमदास झालावाड़ आवाज पत्रिका

*नाम (दीक्षा) लेने वाले व्यक्तियों के लिए आवश्यक जानकारी Part -E* 

14 व्याभीचार निषेध:-- पराई स्त्राी को माँ-बेटी-बहन की दृष्टि से देखना चाहिए। व्याभीचार महापाप है। जैसे:-- गरीब, पर द्वारा स्त्राी का खोलै। सत्तर जन्म अन्धा हो डोलै।।सुरापान मद्य मांसाहारी। गवन करें भोगैं पर नारी।। सत्तर जन्म कटत हैं शीशं। साक्षी साहिब है जगदीशं।। पर नारी ना परसियों, मानो वचन हमार। भवन चर्तुदश तास सिर, त्रिलोकी का भार।। पर नारी ना परसियो, सुनो शब्द सलतंत। धर्मराय के खंभ से, अर्धमुखी लटकंत।। 

15 निन्दा सुनना व करना निषेध:-- अपने गुरु की निंदा भूल कर भी न करें और न ही सुनें। सुनने से अभिप्राय है यदि कोई आपके गुरु जी के बारे में मिथ्या बातें करें तो आपने लड़ना नहीं है बल्कि यह समझना चाहिए कि यह बिना विचारे बोल रहा है अर्थात् झूठ कह रहा है।
गुरु की निंदा सुनै जो काना। ताको निश्चय नरक निदाना।। अपने मुख निंदा जो करहीं। शुकर श्वान गर्भ में परहीं।। निन्दा तो किसी की भी नहीं करनी है और न ही सुननी है। चाहे वह आम व्यक्ति ही क्यों न हो। कबीर साहेब कहते हैं कि -”तिनका कबहू न निन्दीये, जो पांव तले हो। कबहु उठ आखिन पड़े, पीर घनेरी हो।।“ 

16 गुरु दर्श की महिमा:-- सतसंग में समय मिलते ही आने की कोशिश करे तथा सतसंग में नखरे (मान-बड़ाई) करने नहीं आवे। अपितु अपने आपको एक बीमार समझ कर आवे। जैसे बीमार व्यक्ति चाहे कितने ही पैसे वाला हो, चाहे उच्च पदवी वाला हो जब हस्पताल में जाता है तो उस समय उसका उद्देश्य केवल रोग मुक्त होना होता है। जहाँ डाॅक्टर लेटने को कहे लेट जाता है, बैठने को कहे बैठ जाता है, बाहर जाने का निर्देश मिले बाहर चला जाता है। फिर अन्दर आने के लिए आवाज आए चुपके से अन्दर आ जाता है। ठीक इसी प्रकार यदि आप सतसंग में आते हो तो आपको सतसंग में आने का लाभ मिलेगा अन्यथा आपका आना निष्फल है। सतसंग में जहाँ बैठने को मिल जाए वहीं बैठ जाए, जो खाने को मिल जाए उसे परमात्मा कबीर साहिब की रजा से प्रसाद समझ कर खा कर प्रसन्न चित्त रहे।
कबीर, संत मिलन कूं चालिए, तज माया अभिमान। जो-जो कदम आगे रखे, वो ही यज्ञ समान।।
कबीर, संत मिलन कूं जाईए, दिन में कई-कई बार। आसोज के मेह ज्यों, घना करे उपकार।।
कबीर, दर्शन साधु का, परमात्मा आवै याद। लेखे में वोहे घड़ी, बाकी के दिन बाद।।
कबीर, दर्शन साधु का, मुख पर बसै सुहाग। दर्श उन्हीं को होत हैं, जिनके पूर्ण भाग।। 

17 गुरु महिमा:-- यदि कहीं पर पाठ या सतसंग चल रहा हो या वैसे गुरु जी के दर्शनार्थ जाते हों तो सर्व प्रथम गुरु जी को दण्डवत्(लम्बा लेट कर) प्रणाम करना चाहिए बाद में सत ग्रन्थ साहिब व तसवीरें जैसे साहिब कबीर की मूर्ति - गरीबदास जी की व स्वामी राम देवानन्द जी व गुरु जी की मूर्ति को प्रणाम करें जिससे सिर्फ भावना बनी रहेगी। मूर्ति पूजा नहीं करनी है। केवल प्रणाम करना पूजा में नहीं आता यह तो भक्त की श्रद्धा को बनाए रखने में सहयोग देता है। पूजा तो वक्त गुरु व नाम मन्त्र की करनी है जो पार लगाएगा।
कबीर, गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागुं पाय। बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविन्द दियो मिलाय।।
  कबीर, गुरु बड़े हैं गोविन्द से, मन में देख विचार। हरि सुमरे सो रह गए, गुरु भजे होय पार।।
कबीर, हरि के रूठतां, गुरु की शरण में जाय।कबीर गुरु जै रूठजां, हरि नहीं होत सहाय।।
कबीर, सात समुन्द्र की मसि करूं, लेखनि करूं बनिराय। धरती का कागज करूं, तो गुरु गुन लिखा न जाय।।

18 मांस भक्षण निषेध:--अण्डा व मांस भक्षण व जीव हिंसा नहीं करनी है। यह महा पाप होता है।
जैसे साहेब कबीर जी महाराज व गरीबदास जी महाराज ने बताया है:-
कबीर, जीव हने हिंसा करे, प्रकट पाप सिर होय। निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्त गया नहिं कोय।।1।।
कबीर, तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान। काशी करौंत ले मरे, तो भी नरक निदान।।2।।
कबीर, बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल। जो बकरीको खात है, तिनका कौन हवाल।।3।।
कबीर, गला काटि कलमा भरे, कीया कहै हलाल। साहब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।4।।
कबीर, दिनको रोजा रहत हैं, रात हनत हैं गाय। यह खून वह वंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।5।।
कबीर, कबिरा तेई पीर हैं, जो जानै पर पीर। जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर।।6।।
कबीर, खूब खाना है खीचडी, मांहीं परी टुक लौन। मांस पराया खायकै, गला कटावै कौन।।7।।
कबीर, मुसलमान मारैं करदसो, हिंदू मारैं तलवार। कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यमके द्वार।।8।।
कबीर, मांस अहारी मानव, प्रत्यक्ष राक्षस जानि। ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।9।।
कबीर, मांस खांय ते ढेड़ सब, मद पीवैं सो नीच। कुलकी दुरमति पर हरै, राम कहै सो ऊंच।।10।।
कबीर, मांस मछलिया खात हैं, सुरापान से हेत। ते नर नरकै जाहिंगे, माता पिता समेत।।11।।
गरीब, जीव हिंसा जो करते हैं, या आगे क्या पाप। कंटक जुनी जिहान में, सिंह भेड़िया और सांप।।
झोटे बकरे मुरगे ताई। लेखा सब ही लेत गुसाईं। मग मोर मारे महमंता। अचरा चर हैं जीव अनंता।।
जिह्वा स्वाद हिते प्राना। नीमा नाश गया हम जाना।तीतर लवा बुटेरी चिड़िया। खूनी मारे बड़े
अगड़िया।।अदले बदले लेखे लेखा। समझ देख सुन ज्ञान विवेका।
गरीब, शब्द हमारा मानियो, और सुनते हो नर नारि। जीव दया बिन कुफर है, चले जमाना हारि।।
अनजाने में हुई हिंसा का पाप नहीं लगता। बन्दी छोड़ कबीर साहिब कहते हैं:-
   ‘‘इच्छा कर मारै नहीं, बिन इच्छा मर जाए। कहैं कबीर तास का, पाप नहीं लगाए।।‘‘
     
19 गुरु द्रोही का सम्पर्क निषेध:-- यदि कोई भक्त गुरु जी से द्रोह (गुरु जी से विमुख हो जाता
है) करता है वह महापाप का भागी हो जाता है। यदि किसी को मार्ग अच्छा न लगे तो अपना गुरु
बदल सकता है। यदि वह पूर्व गुरु के साथ बैर व निन्दा करता है तो वह गुरु द्रोही कहलाता है। ऐसे
व्यक्ति से भक्ति चर्चा करने में उपदेशी को दोष लगता है। उसकी भक्ति समाप्त हो जाती है।
गरीब, गुरु द्रोही की पैड़ पर, जे पग आवै बीर। चैरासी निश्चय पड़ै, सतगुरु कहैं कबीर।।
कबीर, जान बुझ साची तजै, करै झूठे से नेह। जाकी संगत हे प्रभु, स्वपन में भी ना देह।।
अर्थात् गुरु द्रोही के पास जाने वाला भक्ति रहित होकर नरक व लख चैरासी जूनियों में चला जाएगा

20ण् जुआ निषेध:-- जुआ-तास कभी नहीं खेलना चाहिए।
कबीर, मांस भखै और मद पिये, धन वेश्या सों खाय। जूआ खेलि चोरी करै, अंत समूला जाय।। 

21 नाच-गान निषेध:-- किसी भी प्रकार के खुशी के अवसर पर नाचना व अश्लील गाने गाना भक्ति भाव के विरूद्ध है। जैसे एक समय एक विधवा बहन किसी खुशी के अवसर पर अपने रिश्तेदार के घर पर गई हुई थी। सभी खुशी के साथ नाच-गा रहे थे परंतु वह बहन एक तरफ बैठ कर प्रभु चिंतन में लगी हुई थी। फिर उनके रिश्तेदारों ने उससे पूछा कि आप ऐसे क्यांे निराश बैठे हो? आप भी हमारे की तरह नाचों, गाओ और खुशी मनाओ। इस पर वह बहन कहती है कि किस की खुशी मनाऊँ? मुझ विधवा का एक ही पुत्र था वह भी भगवान को प्यारा हो चुका है। अब क्या खुशी है मेरे लिए? ठीक इसी प्रकार इस काल के लोक में प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति है। यहाँ पर गुरु नानक देव जी की वाणी है कि:-
ना जाने काल की कर डारै, किस विधि ढल पासा वे। जिन्हादे सिर ते मौत खुड़गदी, उन्हानूं केड़ा हांसा वे।। साध मिलें साडी शादी (खुशी) होंदी, बिछड़ दां दिल गिरि (दुःख) वे। अखदे नानक सुनो जिहाना, मुश्किल हाल फकीरी वे।। 

कबीर साहेब जी महाराज भी कहते हैं कि:--
कबीर, झूठे सुख को सुख कहै, मान रहा मन मोद। सकल चबीना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद।।
कबीर, बेटा जाया खुशी हई, बहुत बजाये थाल। आवण जाणा लग रहा, ज्यों कीड़ी का नाल।।
विशेष:- स्त्राी तथा पुरूष दोनों ही परमात्मा प्राप्ति के अधिकारी हैं। स्त्रिायों को मासिक धर्म के दिनों में भी अपनी दैनिक पूजा, ज्योति लगाना आदि बन्द नहीं करना चाहिए, न ही किसी के देहान्त या जन्म पर भी दैनिक पूजा कर्म बन्द नहीं करना है।
नोट:-- जो भक्तजन इन इक्कीस सुत्राीय आदेशों का पालन नहीं करेगा उसका नाम समाप्त हो जाएगा। यदि अनजाने में कोई गलती हो भी जाती है तो वह माफ हो जाती है और यदि जान बुझकर कोई गलती की है तो वह भक्त नाम रहित हो जाता है। इसका समाधान यही है कि गुरुदेव जी से क्षमा याचना करके दोबारा नाम उपदेश लेना होगा।
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 हेमदास झालावाड़ ने बताया
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे।

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