द्वारिका या द्वारका धाम

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 *चार धाम* 


*द्वारिका या द्वारका धाम*


द्वारका भारत के गुजरात राज्य के देवभूमि द्वारका ज़िले में स्थित एक प्राचीन नगर है। *द्वारका गोमती नदी और सिन्धु सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट* पर बसा हुआ है। यह *चारधाम* में से एक है और *सप्तपुरी* (सबसे पवित्र प्राचीन नगर) में से भी एक है।

 यह श्रीकृष्ण के प्राचीन राज्य द्वारका का स्थल है और *गुजरात की सर्वप्रथम राजधानी माना* जाता है।


हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह *श्रीकृष्ण की कर्मभूमि* है। द्वारका भारत के सात सबसे प्राचीन शहरों में से एक है।


कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, पर राज उन्होने द्वारका में किया। यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांड़वों को सहारा दिया। धर्म की जीत कराई और, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया। द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं। बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे। इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि कृष्ण के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई। *आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं।* 


द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1963 में सबसे पहले द्वारका नगरी का ऐस्कवेशन डेक्कन कॉलेज पुणे, डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी और गुजरात सरकार ने मिलकर किया था. इस दौरान *करीब 3 हजार साल पुराने बर्तन* मिले थे। इसके तकरीबन एक दशक बाद आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया कि अंडर वॉटर आर्कियोलॉजी विंग को समंदर में कुछ ताम्बे के सिक्के और ग्रेनाइट स्ट्रक्चर भी मिले हैं।


 यहाँ *शारदा-मठ* को *आदि गुरू शंकराचार्य* ने बनवाया था। उन्होने पूरे देश के चार कोनों में चार मठ बनायें थे। उनमें एक यह शारदा-मठ है। परंपरागत रूप से आज भी शंकराचार्य मठ के अधिपति है। भारत में सनातन धर्म के अनुयायी शंकराचार्य का सम्मान करते है।    


 *रणछोड़जी के मन्दिर* से द्वारका शहर की परिक्रमा शुरू होती है। पहले सीधे गोमती के किनारे जाते है। गोमती के नौ घाटों पर बहुत से मन्दिर है- सांवलियाजी का मन्दिर, गोवर्धननाथजी का मन्दिर, महाप्रभुजी की बैठक।


 *बेट-द्वारका* ही वह जगह है, जहां भगवान कृष्ण ने अपने प्यारे भगत *नरसी की हुण्डी* भरी थी।


रणछोड़ जी के मन्दिर की ऊपरी मंजिलें देखने योग्य है। यहां भगवान की सेज है। झूलने के लिए झूला है। खेलने के लिए चौपड़ है।


महाभारत, हरिवंश पुराण, वायु पुराण, भागवत, स्कंद पुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन प्राप्त होता है।

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